रविवार, 27 दिसंबर 2009

ग़ज़ल....

फिजां रंगीन होगी मस्त तराने होंगे
थी तमन्ना कभी अपने भी फ़साने होंगे

यूँ तो सोचे थे मोहोब्बत न करेंगे लेकिन
क्या पता था तेरी आँखों के निशाने होंगे

एक नहीं हम ही तलबगार तेरी आँखों के
तेरे मयख़ाने में कुछ रिंद पुराने होंगे


वो मुस्करा के मिले कोई तो वजह होगी
उन्हें भी दिल के कई ज़ख्म छुपाने होंगे

हम न समझे थे गोया ये मुकाम आयेगा
क़त्ल होंगे तो मोहोब्बत के बहाने होंगे

मरने वाले की कोई आरज़ू रही होगी
उसकी आँखों में भी कुछ सपने सुहाने होंगे

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1 टिप्पणी:

  1. एक नहीं हम ही तलबगार तेरी आँखों के
    तेरे मयख़ाने में कुछ रिंद पुराने होंगे


    वो मुस्करा के मिले कोई तो वजह होगी
    उन्हें भी दिल के कई ज़ख्म छुपाने होंगे

    हम न समझे थे गोया ये मुकाम आयेगा
    क़त्ल होंगे तो मोहोब्बत के बहाने होंगे
    ये सभी पाँक्तियाँ बहुत सुन्दर लगीं । बधाई

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